शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

काव्य-शिक्षा [आशु कविता -१]

आपको अब तक काव्य-शास्त्रियों और काव्य-मर्मज्ञों द्वारा काव्य शिक्षा की बातें केवल कागज़ी ही दिखायी दीं होंगी। काव्य से विमुख रहे व्यक्ति के जीवन में काव्य शिक्षा का आरंभ सही रूप से कैसे किया जाए? क्या प्रत्येक व्यक्ति में 'कवि' होने की संभावना है? क्या भाव के स्तर पर प्रत्येक व्यक्ति संवेदनशील है? क्या हमारे सूक्ष्म अनुभवों की भावुक अभिव्यक्ति कविता है या फिर भावुक अनुभवों की सूक्ष्मता से की जाने वाली अभिव्यक्ति कविता कही जाती है?

इस माह चार दिवसीय कार्यशाला में एक घण्टा 'कविता' लेखन को मिला। सभी पचास साथियों ने काव्य शिक्षा के इस सत्र का भरपूर आनंद लिया। इस सत्र में उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर पाने का प्रयास हुआ। आपके समक्ष बारी-बारी सभी रचनाकारों की जस-की-तस कविताएँ दी जायेंगी। सभी रचनाकारों की ये पहली-पहली आशु कविताएँ हैं और अधिकतर ने पहली बार ही लिखी हैं। अभी तक इन रचनाओं में कोई काट-छाँट नहीं हुई है। सुधार की अपार संभावनाएँ हैं। सभी रचनाकार अपेक्षा भी करते हैं कि उनकी रचनाओं पर भरपूर प्रतिक्रिया मिले।

[1]

"पैंसिल"
अगर आप
एक पैंसिल बनकर
किसी की खुशी
ना लिख सको तो,
एक अच्छा रबड़ बनकर
किसी के दुःख मिटा दो।


आशु कवि - आलोक उपाध्याय 

प्रीत की भाषा









नहीं जरूरी शब्द निकलना
माँ-बेटी की बातचीत में
आँखों की भाषा है काफ़ी
गूँगे-गुड़ सी व्यक्त प्रीत में॥