सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

बाल-रुदाली
















'हठ' जब बाल-रुदाली गाता
वत्सल हृदय पिघलता जाता
फलता नहीं मनोरथ कोई
'रट' विधि से पूरा हो जाता॥

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

काव्य-शिक्षा [ आशु कविता - ३ ]

आशु कविता का नवोदित कवि क्या सबसे पहले अत्यंत कोमल मनोभावों को कविता की विषयवस्तु बनाता है? वह अपनी अभिव्यक्ति में किसी ऐसे अनुभवजन्य विचार को पोषित करता है जिसने प्रकृति निरीक्षण के समय अन्तर्मन में जड़ें जमा ली थीं? इस बार उत्तराखंड चमोली के आशु रचनाकार श्री बख्तावर सिंह रावत की रचना जस-की-तस दे रहा हूँ। रचना पर बात करने के लिये इच्छुक पाठक आमंत्रित हैं।


"मधुमक्खी"













यदि मैं मधुमक्खी होती
फूलों से ढ़ूँढ़-ढ़ूँढ़ केसर लाती
केसर लाकर छत्ता और शहद बनाती
जहाँ मन करता वहाँ घूमकर आती
घूम-घूमकर तरह-तरह का रस लाती
जहाँ दिखे सुन्दर फूलों की फुलवारी
वहाँ जाती हूँ मैं बारी-बारी
जितना सुन्दर फूल खिले
उतना सुन्दर शहद मिले [मीठा]
शहद बनाकर करती हूँ कार्य महान
जिसे खाने से आती शरीर में जान
शहद खाने के अलावा आता है
पूजा पाठ के कार्यों में काम
खूब शहद खायो स्वस्थ बन जाओ
फूल की क्यारी बनाकर मस्त बन जाओ
मधुमक्खी हूँ मैं मधुमक्खी हूँ
केवल शहद ही नहीं आता काम
छत्ता आता है मोम बनाने का काम
उसका भी है सुन्दर दाम
जो घर मेरा बनायेगा
अच्छा-अच्छा दाम पायेगा
जो फूलों की रक्षा करेगा
उतना ही सुन्दर शहद भरेगा
जितना ज़्यादा शहद भरेगा
उतना स्वस्थ शरीर रहेगा
मधुमक्खी हूँ मैं मधुमक्खी हूँ
शहद बनाने का करती हूँ काम
जिसे मिलते हैं सुन्दर दाम।

- बख्तावर सिंह रावत, चमोली, उत्तराखंड

बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

चित्र-मुग्ध अध्याय



"अम्मा पास बैठना है"

"अम्मा पास बैठना है" - बेटी की ये कामना है। घेरा बच्चों का बना है। घुसना उसमें कब मना है!
अम्मा ने किस्सा बुना है। सारे बच्चों ने सुना है। बेटी ने वो ही चुना है, जो रह जाता अनसुना है!


'सचमुच' का आभार


किस्सों का संसार - बैठे-बैठे संचार। हो किस्सा मज़ेदार – सुनने को सब तैयार॥

तन्मयता व्यापार - में चलता नहीं उधार। बेटी मचली तो मैंने गोदी से दिया उतार॥
''जाना है'' कहकर जाती जाने कितने ही बार। 'झूठमूठ' को होता 'सचमुच' का आभार॥