बुधवार, 28 जनवरी 2015

काव्य-शिक्षा [ आशु कविता-२ ]


जब भी 'आशु कविता' की बात होती है तो लगता है ऐसी रचना के बारे में कहा जा रहा है जो रचनाकार ने तुरत गढ़ी। 

विद्यार्थी जीवन में ऐसे कई अवसर बनते हैं जब (मुख्यतः परीक्षा के दौरान और वाद-विवाद प्रतियोगिता के समय) विद्यार्थी इसका प्रदर्शन कर रहा होता है या कहेंआशु प्रतिभा के आस-पास घूम रहा होता है। वहाँ इस प्रतिभा को सीधे-सीधे पहचाना नहीं जाता। यदि पहचाना जाता भी है तो एक अन्य रूप में। ऐसे विद्यार्थियों को मेधावी,हाज़िर जवाब, प्रत्युत्पन्न मति आदि विशेषण देकर उनकी उस छिपी प्रतिभा से साक्षात्कार नहीं कराया जाता जो होती सभी में है। मात्रा और गुणवत्ता का स्तर हमारी सोच से न्यूनाधिक हो सकता है। 

मन में प्रश्न है : आशुत्व क्या है
मन में भाव आते ही उसे व्यक्त करते-करते अपने विचार को आकार देते जाना आशुत्व है? अथवा 
विचार को व्यक्त करते-करते मुखसुख के अनुसार विराम अल्पविराम की व्यवस्था बना पाना आशुत्व है?
बोलते हुए यह मुखसुख कैसे-बनता जाता है ? 



[2]
"मज़दूर"

मैं मेहनतकश मज़दूर हूँ
देखो फिर भी मैं कितना मज़बूर हूँ
जिन कपड़ों, महलों, गहनों, गाड़ियों को मैंने बनाया है
सोचो फिर मैंने, क्या-क्या पाया है
मेरे वजह से आपके घरों में, जो सुरमाई है
कभी सोचा आपने, इसको बनाने वाले ने क्या पायी है
बात मेरे हकों का करके यहाँ अपने घर को भरने का दस्तूर है।
(देखो फिर भी मैं कितना मज़बूर हूँ)


- राकेश, लखनऊ

शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

काव्य-शिक्षा [आशु कविता -१]

आपको अब तक काव्य-शास्त्रियों और काव्य-मर्मज्ञों द्वारा काव्य शिक्षा की बातें केवल कागज़ी ही दिखायी दीं होंगी। काव्य से विमुख रहे व्यक्ति के जीवन में काव्य शिक्षा का आरंभ सही रूप से कैसे किया जाए? क्या प्रत्येक व्यक्ति में 'कवि' होने की संभावना है? क्या भाव के स्तर पर प्रत्येक व्यक्ति संवेदनशील है? क्या हमारे सूक्ष्म अनुभवों की भावुक अभिव्यक्ति कविता है या फिर भावुक अनुभवों की सूक्ष्मता से की जाने वाली अभिव्यक्ति कविता कही जाती है?

इस माह चार दिवसीय कार्यशाला में एक घण्टा 'कविता' लेखन को मिला। सभी पचास साथियों ने काव्य शिक्षा के इस सत्र का भरपूर आनंद लिया। इस सत्र में उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर पाने का प्रयास हुआ। आपके समक्ष बारी-बारी सभी रचनाकारों की जस-की-तस कविताएँ दी जायेंगी। सभी रचनाकारों की ये पहली-पहली आशु कविताएँ हैं और अधिकतर ने पहली बार ही लिखी हैं। अभी तक इन रचनाओं में कोई काट-छाँट नहीं हुई है। सुधार की अपार संभावनाएँ हैं। सभी रचनाकार अपेक्षा भी करते हैं कि उनकी रचनाओं पर भरपूर प्रतिक्रिया मिले।

[1]

"पैंसिल"
अगर आप
एक पैंसिल बनकर
किसी की खुशी
ना लिख सको तो,
एक अच्छा रबड़ बनकर
किसी के दुःख मिटा दो।


आशु कवि - आलोक उपाध्याय 

प्रीत की भाषा









नहीं जरूरी शब्द निकलना
माँ-बेटी की बातचीत में
आँखों की भाषा है काफ़ी
गूँगे-गुड़ सी व्यक्त प्रीत में॥ 

रविवार, 11 जनवरी 2015

तनाव भाव

करूँगी पी जैसा बरताव
तभी उनका अब सा स्वभाव
बदल पाएगा, मुझसे मेल
बढ़ाने का होगा तब चाव।
घाव पर घाव हुआ न स्राव
रक्त का, मन पर बहुत तनाव
किया करता मुझको बलहीन
कहीं जल में न होऊँ विलीन।