मंगलवार, 24 जून 2014

निःशब्द क्षमा


 
 
 
 
 
 
 



क्षमा किसे मैं करूँ स्वयं से बड़ अपराध किया किसने
माँग रहे तुम क्षमा भूल पर मुझको दंड दिया जिसने
कोमलता के भाव ह्रदय से बन-बनकर तेरे निकले
फिर भी मैं था मौन देख बढ़ गया भाव तेरे पिचले
तुम पर मुझको क्रोध नहीं क्यों शब्द तुम्हारे हैं पिघले
मैं तो खुद को कोस रहा चुपचुप कुछ वर्षों से पिछले
अमा रही जब तक निज मन में तब तक ही मैं था भटके
जब से दरस किया तव का सुषमा मेरे मुख पर मटके।