सोमवार, 26 मई 2014

ग्रहण करूँगा शपथ


मुझे देख तुम आते-जाते 
अधर-ओष्ठ दो बार मिलाते 
स्वर 'माँ' से कमतर न लगता 
'प' व्यंजन की झड़ी लगाते। 

माँ के इर्द-गिर्द है 'शाला' 
शयन समय है छुट्टी वाला 
भाषा शब्द और भावों का 
सीख रही व्याकरण निराला।

डाँट प्यार ममता से लथपथ 
हाँका करते गृहस्थी का रथ 
करूँ सुरक्षित जीवन भव्या 
ग्रहण करूँगा मैं भी शपथ।