सोमवार, 26 मई 2014

ग्रहण करूँगा शपथ


मुझे देख तुम आते-जाते 
अधर-ओष्ठ दो बार मिलाते 
स्वर 'माँ' से कमतर न लगता 
'प' व्यंजन की झड़ी लगाते। 

माँ के इर्द-गिर्द है 'शाला' 
शयन समय है छुट्टी वाला 
भाषा शब्द और भावों का 
सीख रही व्याकरण निराला।

डाँट प्यार ममता से लथपथ 
हाँका करते गृहस्थी का रथ 
करूँ सुरक्षित जीवन भव्या 
ग्रहण करूँगा मैं भी शपथ। 

शनिवार, 17 मई 2014

गुजराती पट्ठा


उपयोगी थी भूमि
लगाने — ईंटों का भट्टा।


भीड़ लगी रहती थी
लेने — चट्टे पे चट्टा। 

इंतज़ार में जाने किसके 
रहता मन खट्टा। 

तिल-तिल चाट रहा दिन-घण्टे 
काला* तिलचट्टा। 

समय बड़ा बलवान
दरकती — भावशून्य सत्ता। 

उसी भूमि से बाहर आया 
पत्ते पे पत्ता। 

विषतरु मूल जड़ों में ठेले 
अमूल दूध मट्ठा। 

दशकों बाद मिला देश को 
गुजराती पट्ठा। 


*काला = समय का (समय रूपी)