मंगलवार, 5 मार्च 2013

शापित सुनार

हर ह्रदय विदारित तार-तार
संवेदन सरिता स्फुटित थार
बह चली कूल दोनों नकार
दामिनि दामन सुन चीत्कार।
 
सभ्यता हो चली शर्मसार
आवरण गया देह को डकार
उबला अबला जबरन विकार
तामस में कुचली ज्योति नार।
 
'हा-हा-हा-हा' कानों के द्वार
कोमल कातर स्वर की कतार
आती टकराती बार-बार
आखेटक मन करता शिकार।
 
हर ओर न्याय को हो गुहार
अनुत्तरित प्रश्न दहलीज पार
कंधों पर किसके न्याय भार
हावी लुहार शापित सुनार!!!
 
 
[व्यापक जन-जागृति की उत्प्रेरक बनी 'बहिन ज्योति पाण्डेय' को भावाञ्ज्ली]