मंगलवार, 14 अगस्त 2012

आपका नाम

द्वार पर शुक बैठा-बैठा
राम का नाम लिया करता.

दिया था जो तुमने उपहार
वही है उसका कारागार
बद्ध करना उसका विस्तार
कहाँ तक किया उचित व्यवहार.

द्वार पर शुक बैठा-बैठा
काल की बाट जुहा करता.

रूठता प्राणों से पवमान
देह जाने को है श्मसान
आपका बहुत किया सम्मान
नेह का होता है अवसान.

द्वार पर शुक बैठा-बैठा
आपको कोसा है करता.

किया जब मैंने उसको मुक्त
जगा जैसे युग से हो सुप्त
किया मेरा उसने जयनाद
द्वार पर स्वयं हुआ नियुक्त.

द्वार पर शुक बैठा-बैठा
आपका नाम लिया करता.