शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

कहो कुछ बेशक आप नहीं


इस जीवन की यही विषमता
साफ़ कहो तो मिले विफलता
हम तुमसे कुछ कहें —
फेरते मुख को आप कहीं
कहो कुछ बेशक आप नहीं .

छूट गया मिलना-जुलना सब
पुनः मिलेंगे शायद न अब
जितना तुमसे दूर चलूँ
आ जाता लौट वहीँ
कहो कुछ बेशक आप नहीं .

धुरी आप मेरे चिंतन की
भले न हो किञ्चित निज मन की
एक रूप में रूप सभी —
दिख पड़ते मुझको यहीं
कहो कुछ बेशक आप नहीं .

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कवि-कोटियाँ 

क्षेमेन्द्र ने भाव-अपहरण करने वाले छह प्रकार के कवियों का उल्लेख किया है. 
कवि का उपकार करने वाली कारयित्री या रचनात्मक प्रतिभा तीन प्रकार की होती है :

सहजा, 
आहार्या और 
औपदेशिकी. 

इसी के आधार पर कवियों की तीन कोटियाँ निश्चित की जा सकती हैं. 

पहली 'सारस्वत', 
दूसरी 'आभ्यासिक' और 
तीसरी 'औपदेशिकी'. 

सारस्वत — इस कोटि में वे कवि आते हैं जिनकी कवित्वशक्ति 'सहजा' प्रतिभा के द्वारा पूर्वजन्म के संस्कारवश कवि-कर्म में प्रवृत्त होती है.  

आभ्यासिक — इस कोटि में वे कवि आते हैं जिनकी कवित्वशक्ति आहार्य [अर्जित] बुद्धि के द्वारा इसी जन्म के अभ्यास से जाग्रत होती है. 

औपदेशिक — इस कोटि  के कवि वे हैं जिनकी काव्य रचना उपदेश के सहारे होती है.