शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

सचमुच यह तो अन्याय बड़ा

सचमुच यह तो अन्याय बड़ा 
कोमल हृत भी हो गया कड़ा
जिसमें निवास कर विनय मरा 
सौभाग्य किवा दुर्भाग्य बड़ा. 

जो नयन नील नभ में घूमे 
वे आज़ देखते शुष्क धरा 
हो जा यौवन अब जरा युक्त 
नयनों को खलता रंग हरा. 

यदि कर सृजन से करें दगा 
तो होगा कवि का कौन सगा. 
नूपुर को तेरे जंग लगे 
यदि पग नर्तन से करें दगा. 

भाव-परिशिष्ट
संजय जी, अब कोई प्रश्न नहीं होगा. 
यहाँ सभी बड़े हैं. 
पाठशाला बंद. कोई स्पष्टीकरण नहीं.