रविवार, 24 अक्तूबर 2010

भाव-विवेचन .... यदि देश-प्रेम सार्वजनिक वृत्ति होता तो देशद्रोहियों का जन्म ही नहीं होता

मित्र
आप पिछली बार मेरे साथ ही रहे उससे मुझे आगे बढ़ने की हिम्मत मिली. मैं इस बार स्थायी भाव को सहयोग करने वाले अन्य भावों के बारे में बताऊँगा . 
मेरी सभी बातें भरतमुनि, अभिनव गुप्त, विश्वनाथ आदि आचार्यों द्वारा किये गये विचार-विमर्श और निष्कर्षों पर आधारित हैं. पहले कभी हमने रस-निष्पत्ति के बारे में परिचयात्मक चर्चा की थी. आज हम रस के महत्वपूर्ण अवयवों के बारे में सरल चर्चा करेंगे. 
रस के प्रमुख चार अवयव हैं — 
[१] स्थायी भाव ............जिसकी चर्चा हम कर चुके हैं और आज भी करेंगे. 
[२] विभाव ..................जिसकी चर्चा आगामी कक्षाओं में करेंगे. 
[३] अनुभाव ................"
[४] व्यभिचारी भाव ......" 


— स्थायी भाव सभी के ह्रदय में वासना रूप में जन्मजात रहते हैं. हमेशा रहते हैं. 
— ये अनुभूतियाँ पढ़े और बेपढ़े, विद्वान् और मूर्ख सभी में पायी जाती हैं, जो अवसर आने पर जागृत और सुषुप्त होती रहती हैं. 
— ये अनुभूतियाँ या वृतियाँ बाक़ी अनुभूतियों की तुलना में अधिक तीव्र, गतिशील और सूक्ष्म होती हैं. 
— इन्हें आप मूल वृत्ति कह सकते हो, चाहे मौलिक मनोवेग कहो अथवा स्थायी भाव. 


इन वृत्तियों का आधार 'अहंकार' की दो मुख्य वृत्तियाँ हैं ............. 
वे हैं ....... [१] राग और [२] द्वेष, 
जो क्रमशः सुखात्मक एवं दुखात्मक प्रकृति की होती हैं. शेष वृत्तियाँ या अनुभूतियाँ स्थूल एवं अस्थायी होती हैं और इनकी संख्या देशकाल एवं वातावरण के अनुसार अनंत होती हैं. 


मित्र, आज की राष्ट्र विषयक रति (देशप्रेम) या प्राचीनकाल से चली आ रही प्रकृति विषयक रति को स्थायी भाव नहीं माना जा सकता क्योंकि एक तो रति का यह स्वरूप सार्वजनिक नहीं है और न ही सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक. यदि देश-प्रेम सार्वजनिक वृत्ति होता तो देशद्रोहियों का जन्म ही नहीं होता. यदि सार्वकालिक होता तो भारत में आज भी राष्ट्रीयता का अभाव क्यों होता? 


इससे स्पष्ट है कि राष्ट्र-प्रेम एक बौद्धिक प्रक्रिया मात्र है. ये ही तर्क समाज प्रेम/ प्रकृति-प्रेम या स्नेह आदि के संबंध में दिए जा सकते हैं. 


'हास' (जिसे आज के मनोवैज्ञानिक शायद चिह्नित नहीं कर पाए) और 'शोक' यदि देखा जाए तो सर्वाधिक पुष्ट मूलभूत प्रवृत्ति है. भवभूति ने इसीलिए 'एको रसः करुण एव' कहा है. 


लौकिक जीवन में भी हम देखते हैं कि बच्चा जन्म के साथ दो ही वृत्तियाँ लेकर आता है. वह या तो रोता है या हँसता है. इनमें भी आप देखेंगे कि बच्चा रोता पहले है और हँसता बाद में है. 


अतः क्रम की दृष्टि से 'शोक' का पहला स्थान है और 'हास' का दूसरा स्थान है. 


इस बात को अगले भ्रमण में विस्तार देंगे. ठीक है मित्र ........ फिर मिलेंगे. दीपावली आ रही है विद्यार्थियों के लिये मिठाई खरीदनी है. आपको भी देने आऊँगा. नमस्ते.