मंगलवार, 17 अगस्त 2010

"क्यू"

इन नयनों का इतिहास आपका सरल नहीं लगता दुरूह.
नर्तन विस्फारित नयन करें क्यूँ सम्मुख शिष्यों के समूह.
आँखों की भाषा सरल समझ आने वाला सौन्दर्य-व्यूह.
पर समझ नहीं पाता जल्दी उदगार आपके मैं दुरूह.
सुन कथन आपके मैं सोचूँ — "माँ सरस्वती में कौन रूह".
श्रद्धा के शब्दों की हृत में पूजा करने को लगी 'क्यू'.

[मैं हिंदी ओनर्स का विद्यार्थी कोलिज के दिनों में जब एक बार गलती से इतिहास की कक्षा में जा बैठा तो वहाँ
डॉ. पूजा जी हिस्टरी ओनर्स के स्टुडेंट्स की क्लास ले रहीं थीं. माध्यम इंग्लिश था. मेरे जो समझ आया मैंने वह कार्य करना शुरू किया. यह कविता इसी का नतीजा है.]

एक पुरानी रचना