बुधवार, 4 अगस्त 2010

कूप-सी आँखें


नयन में बन गया है चित्र सीधा देख लो प्यारी.
लिखा उलटा दिखे सीधा चमकती आँख में म्हारी.
रहो विपरीत मुख फेरे न आओ पास में मेरे.
मुझे मुख दीखता फिर भी पियारा, पीठ में तेरे.
हमारी कूप-सी आँखें तुम्हारा बिम्ब पाकर के.
उसे सीधा किया करतीं तुम्ही से दूर रहकर के.

[प्रिय हरदीप सिंह राणा जी 'म्हारी' शब्द से याद आये.]