मंगलवार, 13 जुलाई 2010

तरल नयन*

सजल नयन मनहुँ सरित.
युगल पलक जनहुं पुलिन.
सजन सुमिरन नित बहित.
शिथिल तन पर मुख मलिन.
अधर हुलसत तन सिहर.
लटकत लट कमर तलक.
उर पर उग युगल कमल,
कस फिर-फिर निखिल वसन
सतत विकसित, मद शयन.
चकित पिय अवनत नयन.

[*तरल नयन — वह वर्णवृत जिसमें 4 नगण हों अर्थात 12  मात्राएँ हृस्व स्वर की हों.  प्रत्येक चरण में ऐसा हो. ]