मंगलवार, 25 मई 2010

नर की लज्जा बदरंग गाय

लज्जा नारी का नहीं कवच
लज्जा तो आभूषण कहाय.
लज्जा स्वाभाविक भाव नहीं
लज्जा तो पहनी ओढ़ी जाय.

लज्जा नारी का मूलतत्त्व
फिर भी गुण आभूषण कहाय.
मैंने लज्जा को कवच कहा
मेरी लज्जा अब मुँह छिपाय.

नारी की लज्जा आभूषण
नर की लज्जा बदरंग गाय.
जो दूध बहुत देती फिर भी
मारी पीटी दुत्कारी जाय.

[छंद ज्ञान के समर्थक "ओढ़ी" और "दुत्कारी शब्दों में एक-एक मात्रा घटाकर भी लिख-पढ़ सकते हैं]