शनिवार, 15 मई 2010

क्षमा करो






मुझ पर हैं दो नयन आपने तो पहले से चार किये.
सोचा मैं भी चार करूँ लेकर तुझसे दो नयन पिये.
चार नयन पाकर भी तुमने मेरे भी दो नयन लिये.
नयनहीन होकर मैं अब कैसे पाउँगा देख पिये!
दया करो मुझपर, मेरे दो नयन मुझे वापस कर दो.
प्यासे तो पहले से हैं वे मर जायेंगे मुक्त करो.
भूल हुई मुझसे जो मैंने माँगे तेरे लोचन दो.
देख नयन तेरे, ललचाया था मन मेरा, क्षमा करो.

[दो दिन खुला रहेगा दान पात्र]
सौदर्य दर्शन में कलुषता का आना और क्षमा भाव मन में ज्वार-भाटे की तरह से है.