शुक्रवार, 7 मई 2010

किसलिये?

किसलिये फूल के यौवन में
कलिका का आता है पड़ाव?
किसलिये धूल के मारग में
चलती है मारुत पाँव-पाँव?

किसलिये सूर्य ने छोड़ दिया
क्रोधित होकर कर-पिय का कर?
किसलिये गरम होती वसुधा
निज पुत्रों पर, जो रहे विचर?

किसलिये कपासी मेघों का
नभ ने पहना है श्वेत-वसन?
ढँकना भूला है अंगों को
किसलिये अंगना का यौवन?

क्यों देह दहन करता उर का
जो पहले से ही शोक-मगन?
क्यों यादों के अब द्वार खोल
आई चुपके हिम-मंद-पवन?

क्यों साँझ समय कवि गेह निकल
देखा करता छवि का यौवन?
क्यों निशा और क्यों चंद-किरण
धरती पर करते हैं नर्तन?

किसलिये दिवा में छिप जाते
जन, छाया की गोदी में सब?
बस उसी तरह सब व्योम तले 
टक-टकी लगाए बैठे अब.

क्यों नाच देख ढँकना भूले
पलकों को निज निर्लज्ज नयन?
मैं आया था सोने लेकिन
क्यों भूल गए निज नयन शयन?