सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

ज्ञानोपनयन-१

आर-पार दिखने वाले
पर्दों को मुझसे हटा अरी.
नयन-दीप जलते हैं पीछे
जल जावेंगे करो घरी.

मुझ नयनों के लिए एक
ज्ञानोपनयन* ला करके दो.
जिसे पहन हर वास्तु पुरातन
नूतन-सी दिखती बस हो.

(*ज्ञानोपनयन — चश्मा - ज्ञान का)
प्रेरणा — ऋतुराज परी