शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

दृग नहीं पीठ पीछे मेरे

दृग नहीं पीठ पीछे मेरे
पढ़ सकूँ भाव मुख के तेरे
चाहूँ देखूं तुमको लेकिन
बैठा हूँ मैं मुख को फेरे.

अनुमान हाव-भावों का मैं
मुख फेर लगाता हूँ तेरे.
सौन्दर्य आपका है अनुपम
संयम को घेर रहा मेरे.

लेता है मेरा ध्यान खींच
बसबस लज्जा-लूतिका जाल.
लगता है चूस रहा तेरा
रक्तपा-रूप निज रक्त खाल.

(कच-देवयानी प्रबंधकाव्य से)